Last Updated on 6 September 2023 by Manu Bhai
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निर्जला एकादशी व्रत कथा पीडीऍफ़ | Nirjala Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF Summary
आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से निर्जला एकादशी व्रत कथा PDF 2023 या Nirjala Ekadashi Katha PDF की सम्पूर्ण जानकारी हिंदी भाषा में दी जायेगी।
निर्जला एकादशी व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्त्व और अन्य जानकारी यहां उपलब्ध होगी। यह एकादशी सभी एकादशियों के व्रत में विशेष और कठिन भी मानी जाती है। हिंदी पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जला एकादशी का व्रत आचरण किया जाता है।
इस व्रत का महत्व विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से सभी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है, परंतु इस व्रत में स्नान और आचमन के अलावा पूरे दिन जल का त्याग किया जाता है नियमों के अनुसार। इसे पाण्डव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा पीडीऍफ़ | Nirjala Ekadashi Vrat Katha
निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर आचरण किया जाता है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, बल्क इसे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस एकादशी के व्रती व्यक्ति को श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत का इतिहास
एकादशी व्रत का इतिहास बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण है। एक बार बहुभोजी भीमसेन ने विनम्र भाव से व्यासजी के मुख से सामर्थ्यशाली वचन सुनकर निवेदन किया कि “हे महाराज! मैं निराहार रहने का व्रत नहीं कर सकता हूँ। रोज़ तीव्र क्षुधा महसूस होती है, भूख मुझसे सहन नहीं होती है। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताएं जिससे मैं स्वयं ही आदर्शवादी एकादशी व्रत के समान फल प्राप्त कर सकूँ।” इस पर व्यासजी ने कहा, “तुम सम्पूर्ण वर्षभर की एकादशी व्रत करने के स्थान पर, एक निर्जला एकादशी व्रत कर लो, जिससे तुम्हें वर्षभर की सभी एकादशी व्रत का फल मिलेगा।” भीमसेन ने उनकी सलाह मानी और निर्जला एकादशी व्रत किया, जिससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसलिए इस एकादशी को ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी का महत्व:-
निर्जला एकादशी व्रत का महत्त्व यह है कि इसे बिना जल ग्रहण के उपवास के साथ किया जाता है। इसलिए यह व्रत तपस्या और साधना के समान महत्त्व रखता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, पांच पांडवों में से एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ की प्राप्ति की थी, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी का व्रत करने से सिर्फ इस एकादशी के फल के साथ-साथ साल की 25 एकादशियों का फल भी मिलता है। जहां साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व होता है, वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ-साथ जल का संयम भी अत्यधिक ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है, अर्थात् निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। इस व्रत को पुरुष और महिलाएं दोनों द्वारा किया जा सकता है। व्रत के विधान को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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